Thursday, February 4, 2010

बर्थ सर्टिफिकेट ऑफ़ लॉर्ड रामा

पवनपुत्र हनुमान बड़े ही चिंतित दिखाई दे रहे थे। उनकी भावभंगिमा से वे किसी उहापोह में लगते थे। आकुल-व्याकुल से वे अपने प्रभु श्रीराम के पास पहुँचे तो उन्हें ऐसे बदहवास देख कर भगवान राम भी घबरा उठे।
प्रभु बोले, ‘हनुमान ये क्या दशा हो गई तुम्हारी? लोग अपनी चिन्ताओं, दु:खों के निवारण के लिए तुम्हारे पास आते हैं और तुम स्वयं ही व्यथित लग रहे हो? क्या लोगों के दु:ख से दु:खी हो गए हो?’
हनुमान बोले, ‘प्रभु बात तो बड़ी गंभीर है। मेरे अस्तित्व डावाँडोल हो गया है। मुझे ऐसा लगने लगा है कि मैं हूँ भी या नहीं।’
‘क्या हुआ तुम्हारे अस्तित्व को? अच्छा भला हो तो है।’
‘बात ये है प्रभु अभी अभी जम्बू द्वीप के शासक और शासक के नियंत्रक और समर्थकों ने आपके अस्तित्व को ही नकार दिया है। उनका कहना है कि राम केवल काल्पनिक चरित्र है और रामायण के पात्र और इसके घटनाक्रम का कोई ऐतिहासिक और वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं और रामसेतु जैसा तो कुछ है ही नहीं। इस आर्यावर्त के पुरातत्वविदों ने भी कुछ ऐसा ही विश्लेषण किया है।‘
राम ने कहा, ‘तो इसमें तुम क्यों चिंतित होते हो? ये तो मेरे अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न है और मुझे इसकी कोई चिंता नहीं है।’
पवनपुत्र ने बड़ी व्यग्रता से कहा, ‘यही तो दु:ख की बात है कि आपके अस्तित्व से मेरा अस्तित्व जुड़ा है। यदि राम नहीं है तो हनुमान तो है ही नहीं। आज भारत में आपसे भी अधिक मेरे भक्त हैं क्योंकि अब जनता जानती है कि नेता से ज़्यादा उसका पीए या सेक्रेटरी काम का होता है। इसलिए जैसे नेताओं के लिए ज़िन्दाबाद के नारे जनता लगाती ज़रूर है परंतु काम करवाने के लिए उसके सेक्रेटरी के पास जाती है। ऐसे ही देश की जनता नेताओं के साथ जयसियाराम के नारे अवश्य लगाती है परंतु संकट के समय आपके पास नहीं मेरे पास आती है। कारण यह है कि मेरे पास यह गदा है और मेरे पराक्रम और शक्ति की गाथाएँ तो प्राचीन काल से प्रचलित हैं। आज लोगों को यह पता है कि काम करवाने या संरक्षण के लिए किसी ‘बाहुबली’ की ज़रूरत होती है इसलिए वो आपके बजाय मेरे पास आते हैं।’
‘तो हनुमान क्या लोग मेरे पराक्रम को भूल गए हैं?’
‘नहीं प्रभु बात वो नहीं है। लोग जानते हैं कि कोई बाहुबली, सांसद या विधायक बन जाता है तो स्वयं के बाहुबल का प्रयोग नहीं करता फिर वह अपने किसी असिस्टेंट के बाहुबल को प्रमोट करता है। शायद इसीलिए लोग मेरे पास आते हैं और आने वालों में अपना काम करवाने वाले कम हैं अधिकतर तो शनिदेव से बचने के लिए मेरे पास आ जाते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि मेरे इलाके में शनिदेव की नहीं चलती।’
‘परंतु हनुमान जहाँ तक मैं जानता हूँ कि ये आधुनिक बाहुबली तो निर्बलों, निर्दोषों पर बलप्रदर्शन करते हैं। ये तो हमारी नीति नहीं रही है।’
‘हाँ प्रभु ये सही है परंतु आज ऐसे बाहुबली ही संसद या विधानसभा में पहुँचते हैं।’
अचानक हनुमान कुछ याद करके बोले, ‘हे राम, बात तो मुद्दे से भटक रही हैं मैं तो यहाँ पर आपके और मेरे अस्तित्व की बात करने आया था।’
श्रीराम बोले, ‘हाँ हाँ, कहो महावीर क्या कहना चाहते हो?’
‘भगवन् मैं यह कहना चाहता हूँ कि त्रेतायुग में ही यदि तात दशरथ ने आपका जन्म प्रमाणपत्र यानी बर्थ सर्टिफ़िकेट बनवा लिया होता तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता। मेरे पिता केसरी ने भी जन्म प्रमाणपत्र नहीं बनवाया।’
‘तब तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं था।’
‘परंतु प्रभु अब ये बहुत आवश्यक है।’
‘पवनपुत्र किसी मनुष्य या किसी भी प्राणी के जन्म लेने पर उसके लिए अलग से किस प्रमाण की आवश्यकता है?’
‘आवश्यकता है प्रभु। यदि इस समय आप जम्बू द्वीप जाएँ और कहें कि आप ही वह रघुवंशी राम हैं जिसने रावण का नाश किया था तो लोग सबसे आपके होने का प्रमाण माँगेगे। किसी भी व्यक्ति का जन्म प्रमाणपत्र ही यह सिद्ध करता है कि इस नाम के व्यक्ति ने फलाँ-फलाँ तारीख़ और समय को फलाँ शहर में जन्म लिया था।’
‘हनुमान शायद मानव ने बहुत अधिक विकास कर लिया है।’
‘पता नहीं प्रभु, परंतु इस जन्म प्रमाणपत्र के बिना गुरुकुल, मेरा तात्पर्य है कि स्कूल का प्रिंसिपल मानेगा ही नहीं कि इस बच्चे ने जन्म भी लिया है।’
इस श्रीराम ने कहा, ‘ठीक है हनुमान तुम्हारे लिए तो तुलसी बाबा ने कहा ही है ‘रामकाज करिबै को रसिया’, तो तुम मेरा जन्म प्रमाणपत्र अब बनवा लो और सरकार को प्रस्तुत कर दो साथ अपनी भ‍ी बनवा लेना।’
अंजनिपुत्र इस पर भड़क गए, ‘नहीं प्रभु, आप चाहें तो मैं फिर से एक छलांग में लंका जा सकता हूँ, आप चाहें तो मैं फिर से संजीवन‍ी बूटी के लिए पूरा गंधमादन पर्वत लाकर दे सकता हूँ। परंतु ये जन्म प्रमाणपत्र का काम मुझसे नहीं होगा। वो नगरपालिका वाले मुझसे इतने चक्कर कटवा लेंगे कि मैं अपनी पवनवेग से चलने की शक्ति ही खो बैठूँगा। वैसे मेरे भक्त नगरपालिका के जन्म-मृत्यु विभाग में हैं परंतु यदि मैं अपने मूल स्वरूप गया तो मुझे बहरूपिया समझकर टरका देंगे और यदि सामान्य मानव के रूप में जाऊँ तो उत्कोच के लिए मेरे पास धन नहीं है।’
श्रीराम ने यह सुनकर बहुत गंभीरता से कहा, ‘मारुतिनंदन, चाहे जो हो तुम यह काम तो कर ही लो। तुम्हारे और मेरे जन्म प्रमाणपत्र के साथ-साथ भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न, सीता और हाँ लव-कुश का जन्म प्रमाणपत्र भी बनवा लेना। देखो हनुमान ये काम तो तुम्हें करना ही है क्योंकि बात मुझे भी समझ में आ गई है कि आज के युग में जम्बू द्वीप में हम सबके अस्तित्व के लिए जन्म प्रमाणपत्र अति आवश्यक है। तुम धन मुझसे ले लो, अपने किसी भक्त को पकड़ो और शीघ्र ही इस कार्य को पूर्ण करो।’
(हनुमान फिर से रामकाज को निकल पड़े हैं, क्या है कोई चिट्ठाकार, टिप्पणीकार, पाठक जो हनुमान के काम का ठेका ले सके।)

इस व्यंगमयी लेख को मालव संदेश डॉट वर्ड प्रेस डॉट कॉम से लिया गया है, जिसको लिखा है मालव संदेश के लेखक अतुल शर्मा जी ने। 

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